Constant Voltage Transformer "CVT"
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Constant Voltage Transformer "CVT"
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Constant Voltage Transformer "CVT" एक ऐसा ट्रांसफार्मर है जिससे हमें एक निश्चित अथवा स्थिर वोल्ट प्राप्त होता है, इस प्रकार के ट्रांसफार्मर के प्राईमरी में दिये जानेंवाले वोल्टेज का सेकंडरी पर एक निस्चित मान के बाद हो रहे उतार चढ़ाव का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है, और उसके सेकंडरी से एक निश्चित वोल्ट हमें प्राप्त होती रहती है, वोल्टेज को Constant बनये रखनें के मामले में यह इतना कारगर होता है कि प्राईमरी के वोल्टेज को अगर 150 वोल्ट से बढ़ाकर अचानक 220 वोल्ट तक कर दिया जाये तो भी इसकी आउटपुट की रिडिंग में कोई विशेष अन्तर नहीं आता है, और वह एक निश्चित वोल्ट देता रहता है। वैसे इलेक्ट्रानिक उपकरण जिनपर voltage fluctuation का ज्यादा असर होता है उन प्रकार के उपकरणो को चलानें के लिए यह ज्यादा उपयुक्त साधन है तथा उनकी सुरक्षा की दृष्टिीकोण से यह एक बेहतर विकल्प भी है, जैसे फैक्स, कंप्युटर, इलेक्ट्रोमेडिकल उपकरण, टेलीविजन, VCR, और अन्य इसी प्रकार के इलेक्ट्रानिक उपकरणो के विधुत आपुर्ति के लिए यह एक उपयोगी पावर सप्लाई के रूप में काफी ज्यादा कारगर है।
Constant Voltage Power Supply "CVT" का इतिहस कोई नया नहीं है, सर्व प्रथम 1960 ई0 में इस प्रकार की पावर सप्लाई बनाये जानें लगी थी, ये Constant Voltage Transformer के निर्माण का प्रारंभिक दौर था इस समय के प्रारम्भिक ट्रांसर्फामरों में Constant Voltage प्राप्त करनें के लिए दो ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता था। बाद के वर्षो में इसकी तकनीकी अनुसंधान के कारण एक ही ट्रांसफार्मर के उपयोग से इस प्रकार की पावर सप्लाई बनाई जानें लगी।
कार्य प्रणाली:-
एक साधारण प्रकार के ट्रांसफार्मर बनानें में एक प्राईमरी और कम से कम एक सेकंडरी क्वायल बनाई जाती है, जिसे कोर के अलग-अलग भाग में अथवा प्राईमरी के उपर ही एक इंसुलेटर पदार्थ का उपयोग करते हुए सेकंडरी क्वायल बनाई जाती है, हम जानते हैं की इन साधारण प्रकार के ट्रांसफार्मरों में प्राईमरी क्वायल पर करंट देनें के पश्चात् क्वायल के चारो ओर एक मैग्नेटीक फलक्स उत्पन्न होती है और ट्रांसफार्मर के सेकंडरी क्वायल पर इसी मैग्नेटीक फलक्स के चलनें के कारण वोल्टेज प्राप्त हो पाता है,
सामान्य तौर पर एक Constant Voltage Transformer "CVT" पॉवर सप्लाई के निर्माण की प्रणाली में प्राईमरी और सेकंडरी की क्वायल बिलकुल अलग-अलग बनाई जाती है, जिसे कोर के अलग-अलग भाग में स्थापित किया जाता है, और बीच में फलक्स के चलनें के लिए एक सामान्तर रूट अलग से बनाई जाती है परंतु इस समानंतर रूट में भी एक बारीक गेप छोड दिया जाता है, इसके पश्चात् इस विशेष ट्रांसर्फामर में एक कैपेसीटर को सामान्तर में लगाया जाता है जो ट्रांसफार्मर में रेजोनेन्स की स्थिति के लिए जिम्मेवार होता है।
जब प्राईमरी क्वायल को वाल्टेज दिया जाता है तो वह शुन्य से प्रारम्भ हो कर धिरे-धिरे बढ़ता है जिससे क्वायल के चारो तरफ मैग्नेटिक फलक्स बढ़ता जाता है, प्रारम्भ में यह मैग्नेटिक फलक्स कोर के आधे भाग में ही जा पाता है क्योंकि कोर के बीच में मैग्नेटिक फलक्स के चलनें के लिए जो वैकल्पिक रूट तैयार किया गया है जिसमें की एक बारीक एयर गेप रखी गई होती है वह इस मैग्नेटिक फलक्स को आगे जानें नहीं देगा परंतु एक विशेष अवस्था में संबंधीत ट्रांसफार्मर के सेकंडरी क्वायल और सेकंडरी क्वायल पर लगाये गये कैपेसिटर का इम्पीडेन्स एक समान हो जायेगा । इम्पीडेन्स जब एक समान अथवा एक बराबर हो जाते हैं तो इस अवस्था को रेजोनेन्स की अवस्था के रूप में जाना जाता है, जब यह ट्रांसर्फामर रेजोनेन्स की अवस्था को प्राप्त करता है तब ट्रांसर्फामर की एल.सी रेजोनेन्ट सर्किट में करंट की मात्रा काफी ज्यादा होती है, और अंतीम अवस्था में इसका कोर Saturate हो जाता है, जब यह कोर एक बार Saturate हो जाता है तो इसके प्राईमरी में इससे अधिक बननें वाले मैग्नेटिक फलक्स को कोर में बनाये गये वैकल्पिक रूट की तरफ मोड़ दिया जाता है, जिससे की सेकंडरी के वोल्टेज में वृद्धि नहीं हो पाती है, और उससे एक निश्चित करंट प्राप्त होता रहता है।
यह "CVT" ट्रांसर्फामर Constant वोल्टेज के मामले में बहुत कारगर है, परंतु वैसे उपकरण जिनकी स्टार्टिंग के लिए हाई वोल्टेज की जरूरत होती है वहां पर यह कारगर नहीं हो पाता, इस प्रकार की पावर सप्लाई इलेक्ट्रानिक उपकरणों तथा इसी प्रकार की अन्य स्मुथ करंट पर चलनें वाले उपकरणों के लिए काफी सही प्रकार से कार्य कर पाती है परंतु वैसे उपकरण जिनको चलानें के लिए प्रारम्भ में ज्यादा करंट की आवश्यकता होती है और वह बाद में एक नॉर्मल करंट पर चल पाते हैं, वैसी विशेषता रखनें वाले उपकरणों के लिए यह कारगर नहीं है।
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Constant Voltage Transformor "CVT" Circuit
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यह ट्रांसर्फामर मुल रूप में रेजोनेन्स की प्रकृया पर कार्य करती है, इस प्रकार के ट्रांसर्फामर बराबर मान वाली सामान्य ट्रांसर्फामर की तुलना में ज्यादा बडे होते हैं, परंतु कार्यशिलता की दृष्टिकोण से यह ट्रांसर्फामर काफी दक्ष होते हैं, इनके निर्माण में कुछ ज्यादा पार्टस का उपयोग नहीं किया जाता है, इसलिए इनके खराब होनें की संभावना भी काफी कम रहती है। मुल रूप से इनके विशेष ट्रांसर्फामर बनानें की अलग तकनीक और एक नॉन पोलेराईजड कैपेसीटर का उपयोग किया जाता है, इनमें लगाये जानें वाले कैपेसीटर का मान उनके ऊपर दीये जाने वाले लोड पर निर्भर करता है यह पावर सप्लाई जहां प्रयोग किया जा रहा हो वहां पर किसी बाहरी स्टेब्लाईजर लगानें की कोई आवश्यकता नहीं होती है, इसके अलावा इनके आउटपुट प्वांट में शोर्ट होनें पर भी इनके खराब हो जानें की कोई संभावना नहीं होती है, पुर्ण शोर्ट हो जानें पर भी लोड को यह काफी देर तक बखुबी बर्दाश्त कर पाती है, और ऐसी अवस्था में भी इनके जलनें की संभावना काफी कम होती है, इनके आउटपुट में होनें वाले शोर्टिंग को जैसे ही हटाया जाता हैं यह फिर से पावर देनें लग जाती है। इन सारी खुबियों के कारण Constant Voltage Transformer "CVT" के उपयोग से बने पावर सप्लाई को एक अच्छा पावर सप्लाई के रूप में जाना जाता है।
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