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इलेक्ट्रॉनिक्स / इलेक्ट्रिकल, सेमीकंडक्टर, इंडक्टर्स, रजिस्टेंस, इलेक्ट्रॉनिक प्रोजेक्ट, बेसिक इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रॉनिक्स ट्यूटोरियल, कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी, और इसी तरह के अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स संबंधित जानकारीयाँ पूर्ण रूप से हिन्दी में ……

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

what is inductors and their works.

inductors

inductors
inductors
जब किसी नरम लोहे के छड़ पर कोई चालक तार लपेटते हैं, और उसपर विधुत आवेश प्रवाहित करते हैं तो उसमे चुम्बकीये गुण आ जाता है! इस चुम्बकीये गुण का कुछ प्रभाव छेत्र होता है, जिसे मैग्नेटिक फील्ड कहा जाता है जब किसी दुसरे इस्पात के छड़ पर लिपटे हुए तार को उस प्रभाव छेत्र के समीप लाते हैं तो उस दुसरे क्वाइल में भी विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है! coil (कुंडल) में जिस विधी से यह गुण आता है उसे इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इंडक्शन कहा जाता  है ! किसी ट्रांसफार्मर की बनावट इस इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इंडक्शन के सिधांत पर आधारित होता है, इसमें एक लोहे का छड़ जिसे कोर कहा जाता है उसके ऊपर तारों की coil (कुंडल) बनाई जाती है इसमें दो या दो से आधिक वाइंडिंग हो सकती है जिस coil (कुंडल) में करंट इनपुट देते है उसे प्राईमरी coil (कुंडल) तथा जिस coil (कुंडल) से विधुत प्राप्त होता है उसे सेकेंड्री coil (कुंडल) कहा जाता है, इस coil (कुंडल) पर मिलने वाला करंट coil (कुंडल) में दिया जाने वाले  तारों के फेरों की संख्या और उसके मोटाई पर निर्भर करता है,

  जब किसी coil (कुंडल) में दिये जाने वाले वोल्टेज की मात्रा को प्रभावित करते हैं तो उससे बनने वाले चुम्बकीये छेत्र की ताकत में भी बदलाव होता है, इसी कारण से ट्रांसफार्मर के सेकंडरी coil (कुंडल) में प्राप्त होनेवाली चुम्बकीये  मात्रा प्रभावित होती है और उसी अनुपात में विधुत की मात्रा हमें प्राप्त होती है! उपयोग किये जानेवाले तार में भी प्रतिरोध होता है (वह तार की quality (गुणवत्ता) और उसकी मात्रा पर निर्भर करता है) उसके कारण भी उत्सर्जित होनेवाले चुम्बकीये उर्जा प्रभावित होती है, जिसके फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले वोल्टेज की मात्रा में परिवर्तन देखने को मिलता है !

inductors
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inductors (प्रेरक) का उपयोग रेडियो ट्रांसमिशन और  रिसीविंग  में  किया  जाता  है इस inductors (प्रेरक) के कारण ही हम ट्रांसमिशन के लिये वांछित बैंडविड्थ का   चुनाव कर पातें हैं ! inductors (प्रेरक) का उपयोग एनालॉग सर्किट और सिग्नल प्रोसेसिंग में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
 ट्रांसफार्मर मूलतः तीन प्रकार के होते हैं!

  • STEP UP TRANSFORMER
  • STEP DOWN TRANSFORMER
  • AUTO TRANSFORMER

step up transformer :-

इसमें प्राइमरी वाइंडिंग के तारों के फेरों की संख्या के अपेक्षा सेकेंड्री coil (कुंडल) में तारों की फेरों की संख्या ज्यादा होती है, इस प्रकार के ट्रांसफार्मर से हम इनपुट में दिये जाने  वाले वोल्ट से सेकंडरी में ज्यादा वोल्ट बढ़ा कर प्राप्त करते   हैं ! इस प्रकार के  ट्रांसफार्मर का प्रयोग उस स्थान पर किया जाता है जहां लो वोल्टेज की समस्या होती है, और वहां हमें ज्यादा वोल्टेज चहिये होता है !

step down transformer :-

इसमें प्राइमरी वाइंडिंग के तारों के फेरों की संख्या सेकेंड्री coil (कुंडल) में तारों की फेरों की संख्या से  ज्यादा होती है, इस प्रकार के ट्रांसफार्मर से हम इनपुट में दिये जाने  वाले वोल्ट से सेकंडरी में  कम  मात्रा में वोल्ट को   प्राप्त करते   हैं ! इस प्रकार के  ट्रांसफार्मर का प्रयोग उस स्थान पर किया जाता है जहां ज्यादा  वोल्टेज से कम वोल्टेज चहिये होता है ! जैसे 110 या 220 वोल्ट से 6, 12, 24, इत्यादि!

auto transformer :-

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में  सिर्फ एक ही वाइंडिंग होता है, ऐसे ट्रांसफार्मरों से हम अपने आवश्यकता के अनुसार टेपिंग निकाल कर कई तरह  के वोल्टेज प्राप्त कर सकते हैं! और यह टेपिंग coil (कुंडल) की सेकंडरी की तरह काम करता है! जैसा की नाम से ही जाहिर है इस प्रकार के ट्रांसफार्मर से हम STEP UP और STEP DOWN दोनों तरह के ट्रांसफार्मर का काम ले सकते हैं, इस प्रकार के  ट्रांसफार्मर के कार्य करने का सिधांत उन दोनों तरह के ट्रांसफार्मर के समान  है!
ट्रांसफार्मर को जांचने का तरीका :- ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग को जाँच करने के लिये multimitter के दोनों प्रोब को प्राइमरी वाइंडिंग के दोनों सिरों से जोड़ने पर multimitter की स्क्रीन पर 0 से 1 km का प्रतिरोध अगर बताता हो तो इस अवस्था में ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग को सही माना जायेगा, अगर प्रतिरोध बहुत ज्यादा बताता हो तो इस अवस्था में ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग को open माना जायगा,वैसे इस अवस्था में तार बीच से टुटा भी हो सकता है, multimitter अगर प्रतिरोध 0 ओम्ह बताये तो ट्रांसफार्मर में शोर्ट होने की संभावना होती है! ऐसा होने पर प्राइमरी वाइंडिंग में a/c इनपुट देने पर ट्रांसफार्मर गरम हो कर धुआं देने लगता है, इस सिर्किट के बीच अगर फ्यूज लगा होता है तो वह टूट जाता है, इस प्रकार से प्राइमरी वाइंडिंग की जाँच की जाती है !
    ट्रांसफार्मर की सेकंडरी वाइंडिंग के जाँच के लिये इसके दोनों पोल पर multimitter की दोनोँ लीड रखते हैं तो कम प्रतिरोध बताता हो तो वह ठीक समझा जायेगा परन्तु प्रतिरोध काफी कम होने की अवस्था में सेकंडरी वाइंडिंग शोर्ट भी हो सकता है इसके जाँच के लिये इससे मिलने वाला आउटपुट वोल्टेज को हम जाँच करेंगे अगर वह सही आ रहा है तो सेकंडरी वाइंडिंग ठीक है, अगर वोल्टेज कम आ रहा हो तो वाइंडिंग शोर्ट हो सकता है इस अवस्था में ट्रांसफार्मर तेजी से गर्म होने लगता है और अगर सेकंडरी  वाइंडिंग से कुछ भी वोल्टेज प्राप्त नहीं होता हो तो ट्रांसफार्मर का सेकंडरी वाइंडिंग ओपन होगा इसे ठीक करने के लिये हम इसमें फिर से नया वाइंडिंग लगाते हैं !
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