HARMONIC DISTORTION
HARMONIC DISTORTION |
एम्पलिफिकेशन
प्रक्रिया के अंतरर्गत इनपुट में दिये जानें वाले सिग्नल से आउटपुट में प्राप्त
होंनें वाले सिग्नल में जब हमें किसी प्रकार का परिर्वतन देखनें को मिलता है तो वह
उसका harmonic
distortion कहलाता
है। सामान्य तौर पर किसी एम्लिफायर के आउटपुट से प्राप्त होनें वाल सिग्नल उसके
इनपुट में दिये जानें वाले सिग्नल का विस्तृत किया हुआ प्रतिबिम्ब होता है, अर्थात् किसी भी तरह की
एम्लिफिकेशन सर्किट के अंतरर्गत इनपुट के तौर पर जो सिग्नल हम उसे देते हैं समान्य
तौर पर उसके आउटपुट विभाग से जो सिग्नल हमें मिलता है उसके वेवफार्म में किसी
प्रकार का परिर्वतन नहीं मिलना चाहिए पर व्यावहारिक तौर पर ऐसा संभव नहीं हो पाता है, इनपुट और आउटपुट के वेव
फार्म में समानता अक्सर देखनें को नहीं मिलती है।आउट पुट में आ रही इसी विकृति को
हम उसके विकृति के तौर पर जानते है।
Harmonic Distortion |
जब हम किसी एम्लिफायर के फ्रिक्वेंशी एम्लिफिकेशन के कर्व
का अध्ययन करते हैं तब हमें harmonic distortion के प्रभाव का विधिवत रूप् से पता चल पाता है, इनपुट की फ्रिक्वेंशी से आउटपुट के फ्रिक्वेंशी
के मिलान से यह पता चलता है खास कर के आउटपुट फ्रिक्वेंशी कर्व लाईन में ओवर टोन
फ्रिक्वेंशी के प्रभाव हमे देखनें को मिलते हैं जो इनपुट फ्रिक्वेंशी पर पहले
उप्लब्ध नहीं थे, इस प्रकार के विकृति परिर्वतीत आउटपुट वाली फ्रिवेन्शी में स्पस्ट
रूप् से देखा जा सकता है, विधुतिये प्रणालियों में
उपयोग किये जानें वाले उपकरणों में harmonic distortion के बढ़नें की वजह से बिजली
के उपकरणों में हीटिंग का प्रतिशत सामान्य तौर पर बढ़ जाता है। मुलरूप् में harmonic किसी भी प्रकार के सिग्नल के
अंतर्निहित साइनसोइड में हो रहे विकृतियों के परिणाम रूवरूप् बढ़ते हैं, यह विकृत सिग्नल ऑडियो, विडियो, रेडियो, और मुख्य विधुत स्रोत में भी देखने को मिल सकते हैं।
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harmonic distortion |
पुश पुल जैसे एम्लिफायर तकनीक में डिस्टोरेश को काफी हद तक
कम किया जा सकता है, इसकी डिजाईनिंग इस प्रकार से
होती है कि एम्लिफिकेशन के प्रतिशत में बढ़ोतरी के साथ साथ डिस्टोरेशन का प्रतिशत
धटता जाता है, पुशपुल एम्लिफायर के
अंतरर्गत बनाई जानें वाली सर्किट में दोहरी टाॅंजिस्टर और आउटपुट ट्रांसफार्मर को इस
प्रकार से व्यवस्थित किया जाता है कि इस प्रक्रिया से गुजरनें वाले डिस्टोरेश
सिग्नल आपस में कैंसल हो जाते हैं और काफी हद तक प्राइमरी सिग्नल के प्रतिरूप को
आउटपुट पर प्राप्त किया जा सकता है, इसके पश्चात harmonic distortion की बची मात्रा को आउटपुट के
समानंातर में लगाये गये एल सी फिल्टर सर्किट का प्रयोग कर के बन रहे harmonic
distortion को
दबा दिया जाता है, इस व्यवस्था में इन्डक्टेन्स
तथा कंडेन्सर को कई तरह के स्वरूपो में व्यवस्थित कर के प्रयोग किया जाता है जो
फिल्टर सर्किट के रूप् में जाना जाता है।संबंधित सर्किट में बन रहे डिस्टोरेशन के
स्वरूप् को दुर करनें के लिए खास प्रकार की फिल्टरेशन व्यवस्था बनाई जाती है जो इस प्रकार से है.
1-लो पास फिल्टर
लो पास फिल्टर के अंतरर्गत एक निश्चित फ्रिक्वेंशी से निचे
की फ्रिक्वेंशी को पास कर दिया जाता है तथा उससे उपर की फ्रिक्वेशी को आगे बढ़नें
से रोक दिया जाता है।
2-हाई पास फिल्टर
इस फिल्टर प्रणालि में लो पास फिल्टर के बिपरीत कार्य होता
है, इसमें एक निश्चिित
फ्रिक्वेंशी से उपर की र्फिवेशी को आगे बढ़ा दिया जाता है परंतु लो फ्रिक्वेेंशी
की रेंज को वहीं राक दिया जाता है।
1-बैंड पास फिल्टर
इस प्रकार के फिल्टर व्यवस्था का उपयोग उस स्थान पर किया
जाता है जहाॅं किसी विशेष बैंड कि फ्रिक्वेंशी के लिए कार्य करना होता है, इसके अंतरर्गत एक विशेष बैंड की फ्रिक्वेंशी से
उपर और निचे की फ्रिक्वेंशी रेंज को रोक दिया जाता है, तथा जिस बैंड के लिये इसे प्रयुक्त किया गया है
उस विशेष बैंड की फ्रिक्वेंशी को यह पास होनें देता है।
2-बैंड रिजेक्ट फिल्टर
यह बहुत ज्यादा प्रयुक्त होनें वाल फिल्टररेसन व्यवस्था
नहीं है फिर भि जिस स्थान पर किसी विशेष बैंड की फ्रिक्वेंशी को आगे बढनें से
रोकनें का होता है वहाॅं पर इसका प्रयाग किया जाता है, एम्लिफाई किये जानें वाले व्यवस्था के अंतीम
स्टेज में यह पैरलर स्वरुप में व्यवरिूथत किया जाता है।
इस प्रकार से हम देखते हैं
कि किसी एम्लिफायर विभाग में सिग्नल बढ़ानें के क्रम बहुत सारी अवांक्षीत
फ्रिक्वेंशी हमें आउटपुट विभाग में मिलते हैं, और इस प्रकार की समस्या को दुर करनें के लिए विभिन्न प्रकार
के फिल्ट्रेशन प्रणालियों का हमें प्रयोग करना पड़ता है जिससे की अवांक्षित
फ्रिक्वेंशी "harmonic
distortion" को कम से कम किया जा सके!
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