Alternator
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power plant |
दुनिया में होनेंवाले प्रगती में विधुत एक एैसा फैक्टर है जो विकाश कार्यो में काफी अहम भुमिका अदा करती है, अगर इसका अनुभव को आप भी देखना चाहते हैं तो अपनें चारो ओर अपनी नजर को एक बार घुमायें और इसके बाद आपको खुद ही समझ में आ जायेगा की बिजली की उपस्थिति के बिना किसी क्षेत्र विशेष, देश, और विशव पर क्या असर पड़नें वाला है। खैर यहाँ मुल रूप में हमें एक Alternator की कार्य विधि के बारे में समझनें का है। जैसा की उपरोक्त में वर्णित किया है एक Alternator के मुख्य दो भाग रोटर और आर्मेचर होते हैं जिन्हें कॉपर वायर जो एनामिलड कवरिंग होती है के उपयोग से काफी सारे क्वायल बना कर आर्मेचर और रोटर दोनों में जो खांचे बनाये गये होते हैं उनमें व्यवस्थित किया जाता है उपयोग के अनुसार छोटे अल्टरनेटरों में सिंगल फेज के अनुसार अथवा तीन फेज की आउटपुट के लिए इस प्रकार की वाईडींग की जाती है जो उपयोग हेतु निर्धारित वोल्टेज उत्पन्न कर सके।
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rotar |
इसके रोटर जो परिर्भमणशिल होतें है उन्हें D/C सप्लाई दे कर एक प्रकार का इलेक्ट्रो मैग्नेट तैयार किया जाता है जो एक उच्च मैग्नेटिक फिल्ड बनाता है, इस घुमनें वाले रोटर तक विधुत पहुंचानें के लिए स्पील्ट रिंग और ब्रशों का उपयोग किया जाता है, उन्हें विधुत देनें के जो स्रोत होते हैं उनके लिये या तो उस रोटर शाप्ट पर ही अलग से क्वाल निर्मित किया जाता है या उसके लिए बाहरी स्रोत से भी विधुत कि आपूर्ति कि जा सकती है, परन्तु ज्यादातर बाहरी स्रोत से विधुत आपूर्ति न कर के उसी रोटर शाप्ट पर Exciter क्वायल का निमार्ण कर लिया जाता है। छोटे स्तरों पर उपयोग किये जानें वाले अल्टरनेटरों के लिए जो ये क्वायल बनाई जाती है उसकी आउटपुट क्षमता 110 अथावा 220 वोल्ट तक रखी जाती है।
इन रोटरों के घुमनें के वेग पर उसकी फ्रिक्वेंशी निर्भर होती है रफ्तार जितना ज्यादा होगा फ्रिक्वेंशी की स्तर उतनी ही तिब्र होगी फ्रिक्वेंशी को लेकर विश्व में अलग-अलग मानक स्थापित किये गये हैं जहां भारत जैसे देश में सामान्तः 50 चक्र प्रति सेकंड अर्थात् 50 हर्टज की फ्रिक्वेंशी का मानक स्थापित किया गया है वहीं अमेंरिका जैसे देशों के लिए 60 हर्टज की फ्रिक्वेंशी को वहां के मानक के तौर पर रखा गया है।
छोटे स्तर पर इन Alternator को चलानें के लिए डिजल या प्रेट्रोल इंजन का उपयोग किया जाता है वहीं बडे-बडे औधोगिक क्षेत्रों अथावा पावर पलांटों में Turbo Generators और Hydroelectric Generators जैसी विधियों का उपयोग कर के विधुत का उत्पादन किया जाता है
Turbo Generators
इस विधि में एक Alternator को चलाने के लिए वाष्प शक्ति का उपयोग किया जाता है, इस समय काफी सारे ऐसे पावर प्लांट हैं जो वाष्प शक्ति का उपयोग कर के बिजली का उत्पादन करते है बिलकुल पुरानें समय के रेलवे में चलनें वाली वाष्प इंजनों की तरह जिनके लिए मुल रूप में कोयला और पानी का उपयोग किया जाता है, इस विधि में पानी को काफी ज्यादा गरम करनें के बाद उत्पन्न होनें वाले उच्च दाब वाले वाष्प को उर्जा के तौर पर उपयोग किया जाता है, जो उस टरबाईन को चलानें का कार्य करते है जिससे जुडी Alternator से विधुत उत्पादन का कार्य लिया जाता है।
Hydroelectric Generators
इस तकनीक में उच्च दबाव वाली पानी के वेग का उपयोग किया जाता है, इस प्रकार की प्रणालि का उपयोग हाइड्रो थर्मल पावर प्लांटों में देखा जा सकता है। इसके लिए बडे-बडे बांध तैयार किये जाते हैं और उॅंचाई से गिरने वाली पानी के तीब्र वेग और तीब्र दबाव का उपयोग टरबाईन को चलानें में किया जाता है, टरबाईन से जुडे काफी बडे-बडे Alternator विधुत उत्पादन का कार्य करते हैं, इस विधि की प्राथमिक लागत काफी ज्यादा होती है परंतु बाद की लगनें वाली लागत काफी कम हो जाती है देख भाल, रख रखाव आदि ही इनके मुख्य खर्च के रूप में शामिल होते हैं।
परंतु वाष्प टरबाईन के साथ ऐसा नहीं है उनके अंतर्गत जब तक विधुत उत्पादन का कार्य किया जाता है तब तक उनके लिए इंधन के रूप में कोयला आदि की आपूर्ति करती रहनी होती है जिनका उपयोग कर के उचित वाष्प तैयार किया जाता है इन बडे-बडे अल्टरनेटरों को गर्म होनें से बचानें के लिए व्यवस्थित रूप से ठंढ़ा करनें वाले उपकरणों को इनके साथ समायोजन किया जाता है जो ठंडी हबा को दबाव के साथ Alternator के एक ओर से पंप करते हैं और दुसरि ओर से गर्म हवा को निकाल दिया जाता है।
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