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इलेक्ट्रॉनिक्स / इलेक्ट्रिकल, सेमीकंडक्टर, इंडक्टर्स, रजिस्टेंस, इलेक्ट्रॉनिक प्रोजेक्ट, बेसिक इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रॉनिक्स ट्यूटोरियल, कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी, और इसी तरह के अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स संबंधित जानकारीयाँ पूर्ण रूप से हिन्दी में ……

बुधवार, 9 जनवरी 2019

what is oscillation, complete description.

 oscillation

oscillation
oscillation

जैसा कि हम जानतें हैं कि कम फ्रिक्वेंशी को प्रसारित नहीं किया जा सकता है, oscillation  अथवा दोलन वह प्रकृया है जिसका उपयोग कर के हम लो फ्रिक्वेंशी को प्रसारीत कर पाते हैं, इसके लिए उस लो फ्रिक्वेंशी को वांक्षीत oscillation
 फ्रिक्वेंशी के उपर फिड अथवा लोड किया जाता है, प्रसारित किये जानेंवाले उस फ्रिक्वेंशी को जब रिसिवर उपकरण के द्रारा कैच करते हैं तो साथ में वह लोड की हुई लो फ्रिक्वेंशी को हम प्राप्त कर पाते हैं, और बाद में कई तरह के फिल्टरेशन के द्रारा सही फ्रिक्वेंशी को छांट कर निकाल लिया जाता है। मुल रूप में अगर समझा जाये तो  फ्रिक्वेंशी एक तरह की दोलन प्रकृया है जो एक निस्चित समय के अन्दर कि जाती है। हमारें घरों के अन्दर आनेवाली बिजली के अन्दर भी फ्रिक्वेंशी संग्रहीत होता है जिसका मान लगभग 50/60 Hz तक होता है, यह काफी लो फ्रिक्वेंशी होता है इसलिए इस प्रकार के फ्रिक्वेंशी का उपयोग प्रसारण के लिए नहीं किया जा सकता! इस प्रकार से हम देखते हैं कि किसी लो फ्रिक्वेंशी को प्रसारीत करनें के लिए ऑसिलेटर एक मौलीक आवश्यकता है, किसी भी प्रकार का ऑसिलेटर मुल रूप से तीन विधियो को समाहीत कर के कार्यान्वित किया जाता है।
  1. एम्लिफायर
  2. फीडबैक
  3. एम्पलीट्यूट

oscillation उत्पन्न करनें के लिए मुलतः दो विधियो का प्रयोग किया जाता है। नेगेटीव रजिस्टेंस ओसीलेटर एव फिड बैक ओसीलेटर किसी ऑसिलेटर के निर्माण में इन्हीं दो विधियों को हम उपयोग में लेते हें इनके अंतर्गत दो तरह के वेभ फार्म को ऑसिलेट  किया जाता है जिन्हें साईन वेभ ऑसिलेटर और दुसरे को रिलेक्जन ऑसिलेटर कहा जाता है। LC और RC ऑसिलेसन प्रकृया के अंतर्गत भी कई विभागो में इसे बांटा जाता है। जो इस प्रकार से हैं :-

RC-OSILATOR

 

  • Tickler or tuned grid Oscillator
RC-OSILATOR
Tuned Grid Oscillator

इस प्रकार के ऑसिलेटर सर्किट का उपयोग पूर्व समय में रेडियो रिसिवर में किया जाता था। जो फीडबैक लुप प्रणाली के अंतर्गत कार्य करते थे इस ऑसिलेटर को पहला ऑसिलेटर माना जाता क्योंकि सर्वप्रथम इस ऑसिलेटर की खोज 1912 के दशक में एडविन आर्मस्ट्रांग के द्रारा किया गया था। प्रारंभिक वैक्यूम ट्यूब से निर्मित ट्रांसमीटर में भी इसका इस्तेमाल कभी कभार किया जाता था। इस ऑसिलेटर के आउटपुट सर्किट में एक टिकलर क्वायल का उपयोग oscillation को ग्रहण करनें के लिए किया जाता है। इसलिए इसको टिकलर ऑसिलेटर भी कहा जानें लगा।

 

  • Tuned Plate Oscillator
Tuned Plate Oscillator
Tuned Plate Oscillator


ट्यून्ड प्लेट ऑसिलेटर सर्किट के अंतर्गत मेटालिक प्लेटों के सहयोग से फ्रिक्वेंशी को उत्पन्न कराने की क्रिया कि जाती है। जो प्लेटों की ट्यूनिंग कर के संभव हो पाता था 19150 के दौरान पाॅल  गोडले ने एक ऑसिलेटर सर्किट का निर्माण किया जिसमें एक वैरियोमीटर की सहायता से ट्यूनिंग किया जाता था।

 

  • TPTG Oscillator
TPTG Oscillator
TPTG Oscillator

टी.पी.टी.जी अर्थात् ट्यून प्लेट ट्यूनिड ग्रिड जो एक प्रकार का नाकारात्मक फीड बैक उत्पन्न करनेंवाला ऑसिलेटर है, अन्य ऑसिलेटर के बिपरीत इसके अन्दर एनोड ग्रिड कैपेसिटेंस (कैंग) के माध्यम से एनोड वोल्टेज के साथ एक चरण में प्रतिक्रिया करायी जाती है अर्थात् इस सर्किट को नाकारात्मक फिड बैक के लिए बनाया गया था। इस oscillation प्रणाली  का उपयोग बहुत ज्यादा नहीं किया गया । 19600 के आखरी चरण में इसका उपयोग विमान के ट्रांसपोंडर में किया जाता था ।

 

  • Hartley Oscillator
Hartley Oscillator
Hartley Oscillator


इस ऑसिलेटर की खोज अमेरिकी वैज्ञानिक  राल्फ हार्टले के द्रारा 19150 में किया गया था। यह एक प्रकार का एल सी ऑसिलेटर है जो एक ट्यून्ड सर्किट का उपयोग करते हुए oscillation प्रकृया को निर्धारित करता है। इस सर्किट में दो इंडिकेर्टस का प्रयोग किया जाता है इसके समानांतर में एक कैपेसिटर का उपयोग कर के फीडबैक सिग्नल का उपयोग करते हुए oscillation प्रक्रिया  को प्रारम्भ कराया जाता है ।

 

  • Collpits Oscillator
Colpits Oscillator
Colpits Oscillator

19180 में अमेरिकी इंजीनियर एडविन के द्रारा इस ऑसिलेटर की खोज की गई थी, यह ऑसिलेटर एल सी ऑसिलेटर श्रृखला के अंतर्गत आनें वाला ऑसिलेटर है जिसमें oscillation प्रकृया को प्रारम्भ करानें के लिए इंडिकेटर्स और कैपेसिटर का उपयोग किया जाता है। इसके फीडबैक को दो कैपेसीट के का उपयोग करते हुए वोल्टेज डिवाइडर से लिया जाता है। मुख्य रूप से इस प्रकार के ऑसिलेटर को निर्मित करनें के लिए FET ट्रांजिस्टर  और वैक्यूम ट्यूब आदि का प्रयोग किया जाता है।

 

  • Crystal Oscillator
Crystal Oscillator
Crystal Oscillator

एक इलेक्ट्रानिक कम्पोनेन्ट क्रिस्टल का उपयोग करते हुए इस प्रकार के ऑसिलेटर को बनाया जाता है, आधुनिक इलेक्ट्रानिक उपकरणों में इसके उपयोग को देखा जा सकता है। रेडियो, कंप्यूटर, घडी, मोबाईल आदि में इसका उपयोग बहुलता से किया जाता है। इसमें वैधुतिक् संकेतों को उत्पन्न करनें के लिए पीजीइलेक्ट्रिक सामग्री का उपयोग करते हैं जो एक प्रकार से पल्स के भांति कार्य करता है। इसे पीजोइलेक्ट्रिकिटी के रूप में भी जाना जाता है, इस प्रकृया में वोल्टेज को सिधे क्रिस्टल पर लगाया जाता है यह काफी सरल और विशवशनिय इलेक्ट्रानिक oscillation प्रकृया है। 1880 के दशक में जैक्स और पियरे क्यूरी के द्रारा इसकी खोज की गई थी परन्तु अगर उपयोग के तौर पर देखा जाये तो 1921 0 में क्रिस्टल का उपयोग करते हुए पहला ऑसिलेटर बनाया गया था 1926 के दशक में क्वार्ट् क्रिस्टल का उपयोग रेडियो प्रसारण के लिए फ्रिक्वेंशी को नियंत्रित करनें के लिए किया जाता था। अब यह ऑसिलेटर सर्किट व्यापक तौर पर उपयोग होता है।

LC- OSILATOR

 

  • Phase Shift Oscillator
Phase Shift Oscillator
Phase Shift Oscillator

फेज शिप्ट ऑसिलेटर को आमतौर पर ऑडियो ऑसिलेटर के रूप में जाना जाता है।  इसका उपयोग ज्यादातर ऑडियो फ्रिक्वेंशी को ऑसिलेट  करने के लिए जाना जाता है। एक ट्राजिस्टर जो की एम्लिफायर के रूप में कार्य करता है इसके आउटपुट के साथ इनपुट को शिप्ट नेटवर्क के माध्यम से वापस लाया जाता है।  इस नेटवर्क में रजिस्टेंस और कैपेसीटर आदि को शामिल किया जाता है तथा इसमें एक फीडबैक का उपयोग किया जाता है जो फ्रिक्वेंशी को निरंतर बनाये रखनें का काम करता है। फेज शिप्ट ऑसिलेटर से हमें साइन वेभ की आउटपुट प्राप्त होती है।

 

  • Multi Vibrators
Multi Vibrators
Multi Vibrators

मल्टीविब्रेटर एक प्रकार का इलेक्ट्रानिक ऑसिलेटर सर्किट होता है जो एक साथ दो अवस्थाओं पर कार्यरत होता है। जो ट्रांजिस्टरों रजिस्टेंस और कैपेसिटर का उपयोग कर के निर्मित किया जाता है! इस सर्किट में रजिस्टेंस अथवा कैपेसिटर के द्रारा क्राॅस सेक्सन का उपयोग कर के सिग्नल को ओसिलेट किया जाता है। इस मल्टीविब्रेटर सर्किट का आविष्कार हेनरी अब्राहम और यूजीन नें प्रथम विश्व यूद्ध के दौरान किया था, मल्टीविब्रेटर सर्किट को तीन तरिकों से निर्मित किया जा सकता है अस्टेबल मल्टीविब्रेटर, "नोस्टेबल मल्टीविब्रेटर, और बिस्टेबल मल्टीविब्रेटर

 

  • Inverse Feedback ar wien bridge Oscillator
Bridge Oscillator
Bridge Oscillator

ब्रिज ऑसिलेटर एक तरह के एम्लिफायर की तरह से कार्य करता है। जो एक बैंडपास फिल्टर का उपयोग करते हुए oscillation प्रकृया को पुरा करते हैं। 1891 में मैक्स वाईन के द्रारा प्रतिबाधाओं को मापनें के लिए इसका विकास किया गया था। यह साइन वेभ उत्पन्न करनेंवाला एक इलेक्ट्रानिक ऑसिलेटर होता है।

 

  • Neon Lamp Oscillator       
Neon Lamp Oscillator
Neon Lamp Oscillator
नियॉन लैप ऑसिलेटर की गणणा एक साधारण प्रकार के ओसीलेटर्स में की जाती है। इसके अनर्तगत एक कैपेसिटर और एक नियॉन बल्ब के द्रारा oscillation उत्पन्न करायी जाती है इस ऑसिलेटर का विकाश 1922 के दशक में स्टीफन ओसवाल्ड पियर्सन के द्रारा की गई थी। जिस कारण से इसे पियर्सन एनसन ऑसिलेटर भी कहा जानें लगा। यह ऑसिलेसन  sawtooth प्रकार के तरंगों को उत्पन्न  करनें में सक्षम होता है।

 

  • Thyratron Sweep Oscillator
Thyratron
Thyratron

दरअसल Thyratron एक प्रकार का ट्यूब होता है जिसमें क्सीनन, नियॉन और पारे की वाष्प जैसे गैसों से भरा जाता है। जिसका उपयोग हाई वोज्टेज स्वीच के रूप में भी किया जाता है। Thyratron का उपयोग रडार जैसे प्रणालियों में भी देखा जा सकता है 1920 के दशक में Thyratron का ऑसिलेसन  वैक्यूम ट्यूबो के उपयोग से किया जाता था, जिनका उपयोग रेडियो सिग्नल डिटेक्टर को और ज्यादा संवेदनशील बनानें के लिये किया जाता था। इस ट्यूब में आर्गन गैस की थोडी मात्रा का उपयोग भी किया जाता था।

 

  • Blocking Oscillator
Blocking Oscillator
Blocking Oscillator

 
इस ऑसिलेटर को एक टाइमिंग जनरेटर के रूप में समझा जा सकता है जो पल्स को उत्पन्न करनें का कार्य करता है। इसका उपयोग प्रसारण कार्य के लिए युक्तिसंगत नहीं है इसे निर्मत करनें के लिए ट्रांसर्फामर रजिस्टेंस कैपेसिटर और ट्रांजिस्टर का प्रयोग किया जाता है, इस प्रकार के ऑसिलेटर का सर्किट काफी सरल होता है। जो एक फ्री रनिंग सिग्नल उत्पन्न करनें में सक्षम है।

             ये सारे ऑसिलेटर के प्रकार है इलेक्ट्रानिक सर्किट मे अलग अलग स्थानों पर इन अलग-अलग प्रकार के ओसीलेटर्स का प्रयोग आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। इसके अलावे फ्रिक्वेंशी के आधार पर भी ऑसिलेटर का वर्गीकरण किया गया है। एक डियो जिसका कि फ्रिक्वेंशी रेंज (20 Hz to 20 Khz ) के बिच का होता हैं जो कि इंसानों के सुनने की  रेंज का फ्रिक्वेंशी माना जाता है। इस फ्रिक्वेंशी को प्रसारीत नहीं किया जा सकता, दुसरा रेडियों फ्रिक्वेंशी रेंज हैं जो ( 20Khz to 30
mhz ) के बीच का होता है जिसका की प्रसारण होता है जैसा की नाम से पता चलता है इस फ्रिक्वेंशी का उपयोग मोडयुलेशन के जरिये डियो के प्रसारण हेतु किया जाता है। जो कि एक रेडियो रिसिवर पर हम सुन पाते हैं। तीसरा अल्ट्रा हाई फ्रिक्वेंशी ऑसिलेटर जिसका फ्रिक्वेंशी रेंज ( 30Mhz To Above ) के बीच का होता है। इस फ्रिक्वेंशी का उपयोग टेलिविजन प्रोग्राम के प्रसारण हेतु किया जाता है। इसमें डियो और विडियो एक साथ प्रसारीत किये जाते है कुछ और प्रकार की ऑसिलेटर सिर्किट का निर्माण विशेष प्रकार के कार्यो के लिए किया जाता है जिनका अध्यन हम आगे के अध्याय में करेंगे ।
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