DIODE
एक diode ‘‘एन टाइप‘‘ और ‘‘पी टाइप‘‘ के अर्ध चालक पदार्थो के समिश्रण से बनता है, यह प्रत्यावर्ती विधुतधारा अथवा विधुत वाहक बल को दिृष्ट विधुत वाहक बल तथा धारा में परीर्वतित करता है, के बॉडी के उपर एक सफेद रंग की धारी बनाई गई होती है, जिस ओर यह धारी बनाई गई होती है वह Cathode का सुचक होता है। उस ओर से नीकाली गई प्वांट को हम Anode कहते हैं । 1894 में पहली बार रेडियो तरंगों का पता लगाया गया और इसके लिए क्रिस्टल का उपयोग भी पहली बार इसी समय किया जानें लगा था, 1930 के दशक के मध्य में बेल टेलीफोन के प्रयोगशालाओं के शोधकर्ताओं ने माइक्रोवेव प्रौद्योगिकी में विस्तार करनें के लिए क्रिस्टल डिटेक्टर की क्षमता को पहचाना। दुसरे विश्व यु़द्ध के बाद। AT&T कंम्पनी नें इन्हें अपने माइक्रोवेव टावरों में इस्तेमाल किया, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के क्षेत्र को पार करते थे, इसके अलावे कई रेडार सेट 21 वीं शताब्दी में भी इस तकनीक का उपयोग करते थे।1950 के दशक के आरंभ में जंक्शन डायोड का विकाश किया गया था।
- diode के मुख्य कार्य :-
एक आम diode का मुख्य कार्य विधुत प्रवाह को एक दिशा में पास करनें का होता है, बिपरित दिशा से अगर हम विधुत धारा प्रवाहित करनें की कोशिश करतें हैं तो वह अवरूद्ध़ हो जाता है, डायोड के इस व्यहार को रेक्टिफिकेशन कहा जाता है। वर्तमान में इसका उपयोग काफी सारे इलेक्ट्रानिक उपकरणों में किया जाता है, उच्च वोल्टेज से सर्किट की सुरक्षा हेतु, रेडियो फिक्वेंशी के लिए Oscillation उत्पन्न करनें में ,प्रकाश उत्सर्जन के लिए L.E.D के रूप में, माइक्रोवेभ और स्विचिंग सर्किट में भी इसका व्यापक प्रयोग किया जाता है।
- वैक्यूम टयूब डायोड :-
वैक्यूम टयूब डायोड के अन्दर स्थापित फिलामेंट जो कैठोड़ हो सकता है टयूब के अन्दर कैठोड़ के रूप में कार्यरत एक धातु की प्लेट को गर्म करनें का कार्य करता है, एक डायोड दो प्वांट वाला एक घटक होता है, वैक्यूम टयुब युग के दौरान सभी इलेक्ट्रानिक उपकरणों जैसे-रेडियो, टेलीविजन, ध्वनि प्रसारक यंत्रों इत्यादि में वाल्ब डायोड का प्रयोग बहुतायत से कीया जा रहा था।
कार्य अनुसार सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं:-
- पावर डायोड
- जेनर डायोड
- डीटेक्टर डायोड
- पावर डायोड :-
इस प्रकार के diode का उपयोग इलेक्ट्रानिक सर्किट में A.C करंट को डीसी करंट में बदलनें का होता है, जैसे इसके उदाहरण हैं IN 40001 से लेकर IN 4007 डायोड और BY 127, 5402 आदि इसे रेक्टीफायर डायोड भी कहते हैं।
- जेनर डायोड :-
इसका प्रयोग इलेक्ट्रानिक सर्किट में D.C वोज्टेज को नियंत्रित करनें के लिए किया जाता है। यह अपनें कई मान के अनुसार बाजार में उपल्बध होते है।जैसे 3.4 Volt , 6 Volt, 8.2 Volt 9, 12, 24, 60, 120 आदि। सामान्यतः इसका उपयोग इलेक्ट्रानिक सर्किट में सुरक्षा के दृष्टिकोण से किया जाता है।
- डीटेक्टर डायोड :-
इस diode का उपयोग इलेक्ट्रानिक सर्किट में कई तरह की फ्रिक्वेंशियों में से विशेष फ्रिक्वेंशि को चुनने के लिए किया जाता है।इसके भी कई वेराईटी बाजार में उपलब्ध हैं। जैसे – 0A 79 IN 34 आदि।
- जंक्शन डायोड :-
एक पी एन जंक्शन diode सेमीकंडक्टर की क्रिस्टल से बना होता है, आमतौर पर सिलिकॉन अर्धचालक पदार्थ से इसका निर्माण होता है, लेकिन जर्मेनियम और गैलियम आर्सेनाइड तत्वों का उपयोग भी इसके निर्माण में बहुतायत से किया जाता है, डायोड के आन्तरिक भाग के एक ओर नाकारात्म चार्ज वाहकता के लिए जिस अर्ध चालक धातु का प्रयोग किया जाता है उसमें नाकारात्मक चार्ज वाहक इलेक्ट्रान होते हैं, जिन्हें एन टाइप अर्ध चालक कहा जाता है और दुसरी तरफ के क्षेत्र में सकारात्मक चार्ज वाहक क्षेत्र होते हैं जिन्हें पी टाइप का अर्ध चालक कहा जाता है, जब एन और पी प्रकार के घटकों को आपस में जोडा जाता है तो इलेक्ट्रानों का एक क्षणिक प्रवाह एन से पी पक्ष की ओर होता है जिसके फलस्वरूप एक तिसरे प्रकार के क्षेत्र का निर्माण होता है जहां कोई वाहक मौजूद नहीं होता है इस क्षेत्र को रिक्त स्थान कहा जाता है क्योंकि इसमें कोई चार्ज वाहक उपस्थित नहीं होता (न तो इलेक्ट्रान और न ही किसी प्रकार का छिद्र) डायोड से निकलनेंवाले ट्रर्मिनल बॉडी के अन्दर एन टाइप और पी टाइप के क्षेत्रों से जुडे होते हैं इन दोनों क्षेत्रों के बीच के भाग को हम पी-एन जंक्शन कहते हैं यह वही भाग होता है जहां डायोड की आन्तरीक क्रिया होती है,जब इसमें उच्च वि़द्धयुत प्रवाहित की जाती है तो यह इलेक्ट्रानो को एन प्रकार के अर्धचालक की ओर से पी प्रकार के अर्धचालक की ओर घटनें वाले क्षेत्र के माध्यम से बहनें की अनुमती देता है, diode के ये जंक्शन विद्धयुत धारा को बिपरीत दिशा में बहनें की अनुमती नहीं देते है। जब विद्धयुत को बिपरीत दिशा से प्रवाहीत करनें की कोशिश की जाती है तो यह उसे अवरूद्ध कर देता है अर्थात इलेक्ट्रानो के प्रवाह में रूकावट हो जाती है, जिसके फलस्वरूप अगले टर्मीनल पर हमें किसी प्रकार का वोल्ट प्राप्त नहीं होता है। आधुनिक दौर में सेमी कंडक्टर डायोड का प्रयोग प्रचुरता से किया जाता है,
(मल्टीमीटर से मापनें पर पता चलता है की यह एक दिशा में कम तथा एक दिशा में बहुत ज्यादा प्रतिरोध प्रर्दर्शित करता है विधुत धारा का प्रवाह अन्य डायोडों की तरह इस डायोड में भी एक दिशा में ही होता है।)
जांचने का तरीका:- एक diode को जांचने के लिए इसके एनोड़ पर मल्टीमीटर का पोजेटीव लीड तथा कैथोड़ पर मल्टीमीटर की नेगेटीव लीड रखनें पर मल्टीमीटर का कांटा 0 से लेकर 1K ओम्स का प्रतिरोध अगर बताता हो तो यह डायोड सही माना जायेगा, अगर पोलिरिटी चेंज करते हैं अर्थात मल्टीमीटर के पोजेटीव लीड को डायोड के कैथोड़ पर तथा ऐनोड़ पर मल्टीमीटर का नेगेटीव लीड रखतें हैं तो मल्टीमीटर काफी हाई रजीस्टेंस बताता है तो यह डायोड सही माना जायेगा, इसे रिर्वस वायस और फार्वड वायस टेस्टींग कहते हैं, अर्थात एक डायोड को दोनों तरफ से मापा जाना चाहिए, डायोड अगर फार्वड वायस में 1K ओम्स कन्टीन्युटी के अलावे रिर्वस वायस में भी कन्टीन्युटी बताता हो तो वह diode र्शोट माना जायेगा और किसी भी तरफ से कोई कन्टीन्युटी न बताता हो तो वह डायोड ओपन होगा ।
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