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इलेक्ट्रॉनिक्स / इलेक्ट्रिकल, सेमीकंडक्टर, इंडक्टर्स, रजिस्टेंस, इलेक्ट्रॉनिक प्रोजेक्ट, बेसिक इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रॉनिक्स ट्यूटोरियल, कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी, और इसी तरह के अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स संबंधित जानकारीयाँ पूर्ण रूप से हिन्दी में ……

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

inverter fundamental and complete description


INVERTER

Inverter
Inverter
INVERTOR एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो दृष्ट विधुत धारा D/C को प्रत्यावर्ती विधुत धारा A/C में परिवर्तित करनें का कार्य करता है, यह विधुत उत्पन्न करनें के लिए उर्जा के रूप में बैट्री का उपयोग करता है, मेन A/C के उपस्थिती में यह बैट्री को चार्ज करता है,तथा मेन A/C के नहीं रहनें पर बैट्री में सिंचित उर्जा का उपयोग कर के यह निर्बाध रूप् से विधुत कि आपुर्ति करता है।

INVERTOR की कार्य प्रणाली : -

इसकी कार्य विधि अथवा मुल भूत सिद्धान्त काफी ही सरल होता है, इसकी सर्किट संरचना में इलेक्ट्रॉनिक विधि का प्रयोग किया जाता है, जो पूर्ण रूप से एक स्विचिंग प्रणाली पर निर्भर करता है, इस सर्किट में कार्यान्वित होनें वाली स्विचिंग सर्किट जब ऑन होती है तो उस समय ट्रांसफार्मर के प्राईमरी क्वायल पर EMF उत्पन्न होती है जो उपयोग किये जानें वाली बैट्री से बहनें वाली करंट की दिशा के विपरीत चलती है, इस समय कार्यशील क्वायल का Inductatance जितना ज्यादा होगा उसी अनुपात में करंट की वृद्धि कम होगी सर्किट में करंट की मा़त्रा अधिकतम प्वांट पर जानें से पहले ही (उपयोग किये जानें वाले स्विच की प्रकृति जो मैनुअल अथवा इलेक्ट्रॉनिक हो सकती है) स्विचिंग प्रणाली के द्रारा करंट को काट दिया जाता है, और  सर्किट की करंट कम होनी शुरू हो जाती है तथा इसके साथ ही सर्किट में EMF की दिशा भी बदल जाती है, सर्किट में करंट की मात्रा जब जिरो के समकक्ष हो जाती है उस समय उपयोग किये जानें वाले स्विचिंग सर्किट के द्रारा यही प्रकृया फिर से दुहरायी जाती है और यह क्रम बार-बार चलता रहता है जिसके फलस्वरूप ट्रांसफार्मर के सेकंड्री क्वायल पर प्रत्यावर्ती विधुत धारा (A/C) उत्पन्न हो पाती है।
       मुख्य रूप से एक वैकल्पिक पावर स्रोत्र के रूप में INVERTOR का उपयोग किया जाता है, यह उपकरण सीमित समय के लिए विधुत आपुर्ति करनें में काफी दक्ष होता है।
उपयोग, मांग, और लोड की प्रकृति के अनुसार उत्पादक कंपनीयों के द्रारा विभिन्न प्रकार के INVERTOR बनाये जाते हैं । साधारण तौर पर घरों में प्रयोग कीये जानेंवाले INVERTOR मे 12,  24, 36 एवं 48 वोल्ट DC या युं कहें की यहाँ क्रमशः सीरिज में जोडे गये एक दो तीन अथवा चार 12-12 वोल्ट की बैटरीयों का उपयोग किया जाता है।
     थोडे बडे स्तर पर उपयोग किये जानें वाले INVERTOR प्रणाली में खास तौर से जिस स्थान पर फोटोवोल्टिक सौर पैनलों की श्रृखला स्थापित की गई होती है वहां पर बडे INVERTOR का प्रयोग किया जाता है, जो DC विधुत धारा को AC विधुत धारा में परिर्वतित् करनें के लिए आवशयक होता है, जिनके अंतरर्गत  उपयोग किये जानें वाले DC विधुत की मात्रा लगभग 200 से लेकर 400 वोल्ट DC अथवा उससे भी ज्यादा हो सकती है, उपयोग की दृष्टिकोण से इससे भी ज्यादा बडे INVERTOR का प्रयोग वाक्षीत कार्य के लिये किया जाता है।
inverter circuit
inverter circuit

INVERTOR का इतिहास : -

वैसे ता INVERTOR के अन्तर्गत होने वाले अनुप्रयोग उन्नीसवी शताब्दी के मध्य से ही प्रारम्भ हो चुके थे प्ररंतु बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यह व्यापक तौर पर होनें लगा, प्रारम्भ में INVERTOR की स्विचिंग प्रणालीयों में वैक्यूम ट्युबों का उपयोग किया जाता था परंतु आगे के समय में कई अन्य प्रकार के सेमीकंडक्टरों का उपयोग इसके निर्माण में प्रचुरता से किया जाने लगा क्योंकि ये आधुनिक सेमीकंडक्टर उच्च दबाव शक्ति को सहनें में सक्षम एवं सर्किट संरचना में सरल होते थे गेट बाई पोलर ट्रांजिस्टर, MOSFETs, इत्यादि नये सेमीकंडक्ट इत्यादि इनके उदाहरण हैं, यह सेमीकंडक्ट स्विचिंग प्रकृया में काफी दक्ष होते हैं तथा इनकी बेसीक स्विचिंग सर्किट भी काफी सरल होती है।

INVERTOR सर्किट की मुल संरचना : -

अगर देखा जाये जाये तो एक INVERTOR के अन्दर काफी साधारण प्रकृति की सर्किट संरचना का प्रयोग किया जाता है, इसके लिए डिजाईन किये जानें वाले ट्रांसफार्मर में प्राईमरी के लिए दो हाई गेज एनामिल्ड वायर (जो ट्रांसफार्मर से ली जानेंवाली वाॅट पर निर्भर करता है) का उपयोग किया जाता है, तथा इन दोनों क्वायलों मे DC करंट को स्थापित करनें के लिए एक स्विचिंग प्रणाली बनाई जाती है जो इलेक्ट्रॉनिक अथवा मैकेनिकल हो सकती है, इन दोनों तरीकों में से किसी भी प्रणाली का उपयोग करते हुए संबंधित क्वायल में बैट्री से मिलनें वाली DC करंट के फोर्स को प्रवाहित कराया जाता है ये सारी प्रकृया ऑटो स्विचिंग सिस्टम के अन्तर्गत समपन्न करायी जाती है, जिसके फलस्वरूप् ट्रांसफार्मर के सेकंडरी क्वायल पर प्रत्यावर्ती विधुत धारा (AC) का उत्पादन संभव हो पाता है। जब मेन पावर उपस्थित होती है उस अवस्था में ये INVERTOR संबंधित बैट्री को बुस्ट करती हैं तथा पावर कट की अवस्था में स्वचालित रूप् में यह AC विधुत धारा का उत्सर्जन करती रहती है, इन्हें संचालित रखनें के लिए मुख्य पावर स्रोत के रूप् में बैट्री का ही उपयोग किया जाता है, पावर बैकप के रूप् में उपयोग की जानेंवाली बैटरीयों की कैपेसीटी पर INVERTOR की रनिंग क्षमता निर्भर करती है। 

फ्रिक्वेंशी रेंज : -

साधारणतः एक INVERTOR की फ्रिक्वेंशी रेंज को संबंधित क्षेत्र विशेष के मानकों पर निर्भर करता है, जैसे कि भरत देश के लिए 50 हर्ट्ज़ की मानक फ्रिक्वेंशी रखी गई है वैसे ही अमेरिका जैसे देश के लिए विधुत फ्रिक्वेंशी की मानक रेंज 60 हर्ट्ज़ रखी गई है, अतः संबंधित क्षेत्र के लिए इसी विशेषता के अनुसार इन्वर्टरों का डिजाईन किया जाता है जो वहां लागु की गई मानकता पर आधारित होते हैं!
wave farm
wave farm

वेव फार्म : -

INVERTOR जैसे घटक के निर्माण में मुल रूप् से दो प्रकार के वेव फार्म का उपयोग किया जाता है, “साइन वेव फार्म” एवं “स्क्वेर वेव फार्म”, इन दोनों की अलग अलग विशेषतायें होती है ज्यादातर इन्हीं दो वेव फार्म पर आधारित INVERTOR की रचना की जाती है जिस INVERTOR के अन्तर्गत साइन वेव प्रणाली का उपयोग किया जाता है उसे साइन वेव INVERTOR कहा जाता है और जिस INVERTOR के अन्दर स्क्वेर वेव तकनीक का उपयोग किया जाता है उसे स्क्वेर वेव INVERTOR कहा जाता है  

 साइन वेव INVERTOR : -

साइन वेव प्रकार के तरंगों का उपयोग कर के बनाई जानेंवाली INVERTOR ज्यादा कारगर एवं साफ सुथरी स्मुथ करंट उत्सर्जित करनें वाली होती है, यह कई स्टेप में साइनसॉइडल AC वेव फाॅर्म उत्सर्जित करती है जो इनपुट स्रोत से आ रहे विधुत की बहुत सारी खामीयों को काफी हद तक दुर करनें में सक्षम होती हैं, साइन वेव इंवर्टर में ज्यादा संवेनशील तथा उच्च फ्रिक्वेंशी पर कारगर तरीके से काम करनें वाले सेमी कंडक्टर जैसे MOSFETs अथवा गेट बाई पोलर ट्रांजिस्टर आदि का प्रयोग किया जाता है। इनके इन्हीं सारी खुबीयों के कारण ही संवेनशील इलेक्ट्रानिक उपकरणों के लिए इस प्रकार की प्रकृति रखनें वाले INVERTOR को अच्छा माना जाता है।
inverter basics circuit
inverter basics circuit

स्क्वेर वेव : -

INVERTOR तकनीक के अन्दर डिजाईन किया जानेंवाला यह काफी सरल तकनीक है, इसके अन्तर्गत साधारण मोडयुलेशन प्रकृया आपनाई जाती है, इस प्रकार के INVERTOR MOSFETs के अलावे ट्रांजिस्टर इत्यादि के उपयोग से भी बनाये जाते हैं। यह साधारण प्रकार के उपकरणों को चलानें के लिए उप्युक्त होती है, परंरतु ज्यादा संवेदनशील इलेक्ट्रानिक उपकरणों के लिए यह उप्युक्त नहीं है, इस प्रकार के INVERTOR में हमिंग की शोर ज्यादा होती है, और यह AC इनपुट के अनवांक्षीत प्रभावों को सही प्रकार से दुर करनें में पूर्ण कारगर नहीं हो पाते हैं।
inverter fundamental
inverter fundamental
इस प्रकार से हम देखते हैं कि यह उपकरण काफी उपयोगी है, जिसका प्रयोग आज के समय में घरेलु अथवा औधयोगिक क्षेत्रो में आम तौर पर किया जाता है INVERTOR के अन्तर्गत किसी प्रकार का चलायमान अर्थात् घुमनेंवाले अवयव का उपयोग नहि किया जाता है। इनर्वटर के उपयोग सुर्य की रौशनी से प्राप्त होनी वाली उर्जा (जो फोटोवोल्टिक सेल का उपयोग कर के प्राप्त किया जाता है,) को ज्यादा उपयोगी बनाने हेतु AC विधुत धारा में परिर्वतित करनें की आवशयकता होती है, जिससे कि संबंधित उपकरणों को चलाया जाता है, यहाँ पर मिलनें वाली DC विधुत धारा को AC विधुत धाारा में परिर्वतित करनें हेतु एक INVERTOR की मुख्य भुमिका होती है। आज के समय में वैसे लगभग सभी जगहों पर जहां DC विधुत धारा को AC विधुत धारा में परिर्वतित करना होता है, INVERTOR का उपयोग आम तौर पर देखा जा सकता है।


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